आज लगभग प्रत्येक छात्र बाहरवीं के बाद करियर के रूप में किसी न किसी क्षेत्र में जाने का प्रयास करते है , जैसे -कोई इंजीनियरिंग ,मेडिकल ,मार्केटिंग में या फिर कोई लॉ की डिग्री प्राप्त करना चाहते है ,परन्तु इन डिग्रियों को प्राप्त करने में लगभग चार वर्ष या पांच वर्ष का समय लग जाता है ,और ऐसे पाठ्यक्रमो की फीस अधिक होती है, डिग्री मिलने के पश्चात नौकरी मिलने की कोई गारंटी नहीं है ,क्योंकि आज के युग में प्रतिस्पर्धा अधिक है |
ऐसी स्थिति में आप डिप्लोमा कोर्स कर सकते है, क्योकि डिप्लोमा कोर्स में समय और फीस दोनों डिग्री कोर्स की अपेक्षा काफी कम होती है | डिग्री और डिप्लोमा कोर्से में क्या अंतर होता है, इसके बारें में आपको इस पेज पर विस्तार से बता रहें है |
डिग्री और डिप्लोमा कोर्स में अंतर
एक शैक्षिक कार्यक्रम के अंतर्गत छात्र द्वारा सभी परीक्षणों को सफलता के साथ पूरा करने के बाद दिया गया प्रमाणपत्र डिग्री कहलाता है । यह डिग्री स्नातक स्तर या उससे ऊपर की उपाधि देने वाले विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान की जाती हैं । विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त कुछ दूसरे मान्यता प्राप्त संगठनों द्वारा प्रदान किये गये शैक्षिक प्रमाणपत्र डिप्लोमा कहलाते है, इसका अर्थ भी शैक्षिक कार्यक्रम को पूरा करने के बाद दिया गया प्रमाणपत्र है ,इनका स्तर भी स्नातक या स्नातकोत्तर हो सकता है ,यदि उनका गठन विश्वविद्यालय के रूप में नहीं है, तो उन्हें सिर्फ डिप्लोमा देनें का अधिकार है |
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डिग्री तथा डिप्लोमा कोर्स का उद्देश्य अलग- अलग होता है । डिग्री कोर्स में शैक्षणिक ज्ञान पर अधिक महत्व दिया जाता है, इस पाठ्यक्रम के अंतर्गत पाठ्यक्रम इस प्रकार से डिजाइन होता है कि, छात्र रुचि वाले विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों का मूल ज्ञान प्राप्त कर सके । जिस विषय में छात्र को रुचि होती है ,जिसका आगे चल कर वह विशेष रूप से अध्ययन करना चाहता है ,उसे मेजर या स्पैशलाइजेशन कहा जाता है , जबकि अन्य विषयों को माइनर या इलैक्टिव्स कहा जाता है ।
डिग्री तथा डिप्लोमा कोर्स का उद्देश्य अलग- अलग होता है । डिग्री कोर्स में शैक्षणिक ज्ञान पर अधिक महत्व दिया जाता है, इस पाठ्यक्रम के अंतर्गत पाठ्यक्रम इस प्रकार से डिजाइन होता है कि, छात्र रुचि वाले विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों का मूल ज्ञान प्राप्त कर सके । जिस विषय में छात्र को रुचि होती है ,जिसका आगे चल कर वह विशेष रूप से अध्ययन करना चाहता है ,उसे मेजर या स्पैशलाइजेशन कहा जाता है , जबकि अन्य विषयों को माइनर या इलैक्टिव्स कहा जाता है ।
डिप्लोमा में छात्र को किसी एक व्यवसाय या पेशे से सम्बंधित महत्वपूर्ण बातो को जानने पर महत्व दिया जाता है । डिप्लोमा पाठ्यक्रम में किताब की पढ़ाई पर महत्व कम होता है ,तथा अधिक ध्यान व्यवसाय या पेशे से जुड़ी स्थितियों को सम्भालने का प्रशिक्षण देने पर होता है । इनमें से कुछ दिन अप्रैंटिसशिप तथा ऑन-जॉब ट्रेनिंग भी प्रदान की जाती है ।
लैटरल एंट्री की सुविधा
वर्तमान में छात्रों के पास डिप्लोमा से शुरूआत करते हुए बाद में लैटरल एंट्री के अंतर्गत डिग्री कोर्स में प्रवेश लेने का विकल्प उपलब्ध है । अच्छे अंकों वाले डिप्लोमा धारक सीधे डिग्री के दूसरे वर्ष में प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं । कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में डिप्लोमा धारक कम्प्यूटर इंजीनियरिंग डिग्री के दूसरे वर्ष में प्रवेश ले सकते है ,परंतु यह डिप्लोमा देने वाले संस्थान की प्रतिष्ठा तथा मान्यता पर निर्भर करता है ।
अवश्य ध्यान रखें
किसी भी डिप्लोमा या डिग्री कोर्स में प्रवेश लेने से पहले संस्थान की प्रतिष्ठा तथा मान्यता की जांच करना आवश्यक है ,इसके अतिरिक्त संसथान में शिक्षा व शिक्षकों के स्तर , सुविधाओं आदि के बारें में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है |
मित्रों,यहाँ आपको हमनें डिप्लोमा और डिग्री कोर्स के अंतर के बारें में बताया | यदि इससे सम्बंधित आपके मन में कोई प्रश्न आ रहा है ,तो कमेंट बाक्स के माध्यम से व्यक्त कर सकते है | हमें आपके द्वारा की गयी प्रतिक्रिया का इंतजार है |
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