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Jan 1, 2018

भारत का अब अपना "नाविक सिस्टम" होगा शुरू-अमेरिकी GPS की तरह मिलेगी सटीक जानकारी

भारत का अब अपना "नाविक सिस्टम" होगा शुरू-अमेरिकी GPS की तरह मिलेगी सटीक जानकारी
अमेरिकी ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) की तर्ज पर भारत, ने अब अपना स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम विकसित किया  है । इसरो ने हाल ही में अपने अपने सातवें और अंतिम नेविगेशन सेटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया  ।

इस नेविगेशन सेटेलाइट का नाम इंडियन रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट  सिस्टम 1G है । इस सिस्टम को भारत में औपचारिक रूप से नाविक अर्थात नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलशन के नाम से जाना जाएगा । इसके बारे में आपको इस पेज पर विस्तार से बता रहे है |


इंडियन रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट  सिस्टम
आई आर एन एस एस यानी इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम भारत का पहला स्वदेशी जीपीएस सैटेलाइट सिस्टम है | इसमें अमेरिका के 24 उपग्रहों के स्थान पर 7 उपग्रहों सें भारत को कवर किया जायेगा यह इतना सटीक होगा ,की आपको गंतव्य के 20 मीटर दायरे की लोकेशन से अवगत करा देगा |

अमेरिका का जीपीएस सिस्टम भी भारत में लगभग इतना ही सटीक है  | यह भारत और उसके 1500 किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाले इलाकों से रियल टाइम पोज़िशनिंग जानकारी उपलब्ध कराएगा | आई आर एन एस एस के डाटा को कार संचालन, एयरक्राफ्ट, नौका संचालन, स्मार्टफ़ोन के अलावा और भी कई डिवाइसों हेतु प्रयोग किया जाएगा |


इस सैटेलाइट को हाल ही में  श्रीहरिकोटा से PSLV - C 31 से ले जाकर  दोपहर 12 बजकर 50 मिनट पर उड़ान भरी और 20 मिनट  पश्चात इस सेटेलाइट को पृथ्वी की Orbit में स्थापित कर दिया गया । PSLV-C 31,  PSLV लॉन्च सिस्टम का XL यानी Extra Large संस्करण है जिसके द्वारा आंतरिक्ष में अधिक भार ले जाया जा सकता है ।

भारत को नेविगेशन सिस्टम के मामले में आत्मनिर्भर होने के लिए कुल सात सेटेलाइट लॉन्च करने थे , इस कड़ी में ये सातवां सेटेलाइट है  जो अगले 12 वर्ष तक कार्य  करेगा । इस नाविक नेविगेशन सिस्टम के अन्तर्गत 7 सेटेलाइट्स लॉन्च करने में लगभग 1420 करोड़ रुपये का खर्च हुए है । जैसे ही सातवां सेटेलाइट काम करना शुरू करेगा भारत का देसी नेविगेशन सिस्टम अमेरिका के जीपीएस सिस्टम की तरह सटीक कार्य करेगा ।


भारत इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम की उपयोगिता
प्रारंभ में जीपीएस के उपयोग का मूल उद्देश्य दुश्मन की सैन्य हरकतों पर नजर रखना था | आज जीपीएस सिस्टम का लोगों के लिए उपयोग किए बिना आधुनिक संचार आधारित जीवनशैली की कल्पना तक नहीं की जा सकती । इस सिस्टम की सहायता से नक्शा तैयार करना, जियोडेटिक आंकड़े जुटाना, समय का बिल्कुल सही पता लगाना, मोबाइल फोनों के साथ एकीकरण, भूभागीय हवाई तथा समुद्री नौवहन तथा यात्रियों तथा लंबी यात्रा करने वालों को भूभागीय नौवहन की जानकारी देना आदि सम्मिलित हैं ।


नेविगेशन विद  इंडियन कॉन्स्टेलशन सेना के साथ- साथ आम नागरिकों के लिए भी उपलब्ध होगा, आम भारतीय नागरिक नाविक  की स्टैण्डर्ड पोजिशनिंग सर्विस का  प्रयोग कर सकेंगे , जबकि इसके जिस वर्जन को सेना द्वारा प्रयोग किया जायेगा वह आम लोगों के लिए प्रतिबंधित होगा । आम मोबाइल  फ़ोन्स  में मौजूद जीपएस रिसीवर की सहताया से भारत के लोग स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर पाएंगे । स्वदेशी नेविगेशन  सैटेलाइट्स  लॉन्च करने के बाद भारत विश्व का पांचवा ऐसा देश बन गया है ,जिसके पास संपूर्ण रूप से अपना नेविगेशन सिस्टम है ।


क्यों आवश्यक था भारत के लिए अपना जीपीएस सिस्टम ?
आज से 17 वर्ष पूर्व सन 1999 में  जब पाकिस्तानी सेना कारगिल की ऊंची पहाड़ियों की आड़ लेकर भारत पर हमला कर रही थी । कारगिल घुसपैठ के समय भारत के पास ऐसा कोई सिस्टम मौजूद नहीं होने के कारण सीमा पार से होने वाली घुसपैठ के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकी थी , बाद में यह चुनौती बढ़ने पर भारत ने अमेरिका से जीपीएस सिस्टम से मदद उपलबद्ध कराने का अनुरोध किया गया था ,परन्तु अमेरिका ने मदद करने से इनकार कर दिया था ।

इसके बाद से  जीपीएस की तरह ही देशी नेविगेशन सेटेलाइट नेटवर्क के विकास पर जोर दिया गया और अब भारत ने स्वयं विकसित कर एक बड़ी सफलता प्राप्त की है ।भारत में जब अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरूआत हुई थी, तब रॉकेट साइकिल पर रखकर और उपग्रह बैलगाड़ी पर रखकर एक स्थान  से दूसरे स्थान तक  पहुंचाए जाते थे। वर्ष 1980 तक अंतरिक्ष के बाज़ार में अमेरिका का 100 प्रतिशत कब्ज़ा था जो अब घटकर 60 प्रतिशत रह गया है ।


मित्रों,यहाँ हमनें आपको भारत द्वारा लांच किये गये नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम के बारे में बताया | यदि इससे सम्बंधित आपके मन में कोई प्रश्न आ रहा है तो कमेंट बाक्स के माध्यम से व्यक्त कर सकते है | हम आपके द्वारा की गयी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे है |

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